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भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर- ‘जननायक’ को सबसे बड़ा सम्मान

भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर
भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश के सबसे बड़े सम्मान से नवाज़ा जाएगा। केंद्र की मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न सम्मान से सम्मानित करने का फ़ैसला किया है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा राष्ट्रपति भवन से जारी एक बयान में की गई। जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया कि इस बार भारत सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को देश के सबसे बड़े सम्मान से नवाजने का फैसला किया है।

बुधवार को होने वाली उनकी 100वीं जयंती से पहले उन्हें मरणोपरांत देश के सबसे बड़े सम्मान से नवाजने का फैसला किया गया है।

कर्पूरी ठाकुर का जीवन परिचय

कर्पूरी ठाकुर को बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शूमार किया जाता है। उनकी गिनती सामाजिक अलख जगाने वाले नेताओं में की जाती है। कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 फरवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया में एक साधारण नाई परिवार के यहां हुआ था। उन्होंने 1940 में पटना से मैट्रिक की परीक्षा पास की और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। जानकारों की माने को कर्पूरी ठाकुर ने पूरी ज़िंदगी कांग्रेस विरोधी राजनीति करते हुए सियासी मुकाम हासिल किया था। आपातकाल के दौरान भी उन्हें गिरफ़्तार करने की लाख कोशिश की गई थी लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी इंदिरा गांधी उन्हें गिरफ़्तार नहीं करा सकी थीं।

1970 में पहली बार मुख्यमंत्री बने।

कर्पूरी ठाकुर 1970 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। 22 दिसंबर 1970 को उन्होंने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। हालांकि उनका पहला कार्यकाल सिर्फ़ 163 दिन का ही था ।

दूसरा कार्यकाल भी अधूरा रहा

1977 की जनता लहर में जब जनता पार्टी को भारी जीत मिली तब भी कर्पूरी ठाकुर दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। लेकिन वो अपना दूसरा कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सके।

जननायक कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर को सरकार चलाने का पूरा मौक़ा नहीं मिला। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने कार्यकाल में समाज के दबे पिछड़े लोगों की हित में काम किया। उन्होंने बिहार में मैट्रिक तक की पढ़ाई मुफ़्त कर दी। राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करना अनिवार्य बना दिया। उन्होंने अपने कार्यकाल में गरीबों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के हक में ऐसे तमाम काम किए, जिससे बिहार की सियासत में आमूलचूल परिवर्तन आ गया। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक ताकत में जबरदस्त इजाफा हुआ और वो बिहार की सियासत में समाजवाद का बड़ा चेहरा बन गए।

बिहार की सियासत में कर्पूरी के चेलों का सिक्का

बिहार की सियासत के दो सबसे बड़े नेता लालू यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर के ही शार्गिद हैं। जनता पार्टी के दौर में लालू और नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखे। ऐसे में जब लालू यादव बिहार की सत्ता में आए तो उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाया। वहीं, नीतीश कुमार ने भी अति पिछड़े समुदाय के हक में कई काम किए।

बिहार की सियासत की धुरी हैं कर्पूरी

बिहार की सियासत की कर्पूरी ठाकुर की अनदेखी नहीं की जा सकती। भले ही उन्होंने 1988 में दुनिया को अलविदा कह दिया हो लेकिन आज भी उन्हें जननायक और जननेता के रूप में याद किया जाता है। पिछड़े और अति पिछड़े मतदाताओं के बीच को आज भी लोकप्रिय हैं। बिहार में पिछड़े और अतिपिछड़ों की आबादी 50 फ़ीसदी से ज़्यादा है और यही वजह है कि आज भी अपनी सियासी ज़मीन को मजबूत बनाने के लिए नेता कर्पूरी ठाकुर का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लेते हैं। और उनके दिखाए रास्ते पर चलने की कसम खाते हैं।

The Hindi Post
Author: The Hindi Post

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